Wednesday, May 20, 2020

NATURAL DISASTER

प्राकृतिक आपदा 

ऐसी कोई भी प्राकृतिक घटना जिससे मनुष्य के जीवन या सामग्री को हानि पहुंचे प्राकृतिक आपदा कहलाता है। सदियों से प्राकृतिक आपदायें मनुष्य के अस्तित्व के लिए चुनौती रही है।

जंगलो में आग, बाढ़, हिमस्खलन, भूस्खलन, भूकम्प, ज्वालामुखी, सुनामी, चक्रवाती तूफ़ान, बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदायें बार-बार मनुष्य को चेतावनी देती है। वर्तमान में हम प्राकृतिक संसाधनो का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है।

ये मनुष्य के मनमानी का ही नतीजा है। इन आपदाओं को ‘ईश्वर का प्रकोप या गुस्सा’ भी कहा जाता है। आज मनुष्य अपने निजी स्वार्थ के लिए वनों, जंगलो, मैदानों, पहाड़ो, खनिज पदार्थो का अंधाधुंध दोहन कर रहा है। उसी के परिणाम स्वरुप प्राकृतिक आपदायें दिन ब दिन बढ़ने लगी है।हमे सावधानीपूर्वक प्राकृतिक संसाधनो का इस्तेमाल करना चाहिये। ऐसी आपदाओं के कारण भारी मात्रा में जान-माल की हानि होती है।


एक प्राकृतिक आपदा एक प्राकृतिक जोखिम का परिणाम है जैसे की ज्वालामुखी विस्फोट, भूकंप, या भूस्खलन जो कि मानव गतिविधियों को प्रभावित करता है। मानव दुर्बलताओं को सही योजना और आपातकालीन हप्रबंधन का आभाव और बढ़ा देता है, जिसकी वजह से आर्थिक, मानवीय और पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है। परिणाम स्वरुप होने वाली हानि निर्भर करती है जनसँख्या की आपदा को बढ़ावा देने या विरोध करने की क्षमता पर, मतलब उनके लचीलेपन पर....

"जब जोखिम और दुर्बलता का मिलन होता है तब दुर्घटनाएं घटती हैं" जिन इलाकों में दुर्बलताएं निहित न हों वहां पर एक प्राकृतिक जोखिम कभी भी एक प्राकृतिक आपदा में तब्दील नहीं हो सकता है, उदहारण , निर्जन प्रदेश में एक प्रबल भूकंप का आना. बिना मानव की भागीदारी के घटनाएँ अपने आप जोखिम या आपदा नहीं बनती हैं


आईये जानते है विभिन्न प्रकार की  प्राकृतिक आपदाओं के बारे में ।

[1]. भूकम्प (earthquake)-


भूकम्प या भूचाल पृथ्वी की सतह के हिलने को कहते हैं। यह पृथ्वी के स्थलमण्डल में ऊर्जा के अचानक मुक्त हो जाने के कारण उत्पन्न होने वाली भूकम्पीय तरंगों की वजह से होता है। भूकम्प बहुत हिंसात्मक हो सकते हैं और कुछ ही क्षणों में लोगों को गिराकर चोट पहुँचाने से लेकर पूरे नगर को ध्वस्त कर सकने की इसमें क्षमता होती है। भूकंप का मापन भूकम्पमापी यंत्रों सीस्मोमीटर के साथ करा जाता है, जो सीस्मोग्राफ भी कहलाता है। एक भूकंप का आघूर्ण परिमाण मापक्रम पारंपरिक रूप से नापा जाता है, या सम्बंधित और अप्रचलित रिक्टर परिमाण लिया जाता है। 6 या उस से कम रिक्टर परिमाण की तीव्रता का भूकंप अक्सर अगोचर होता है, जबकि 7 रिक्टर की तीव्रता का भूकंप बड़े क्षेत्रों में गंभीर क्षति का कारण होता है। झटकों की तीव्रता का मापन विकसित मरकैली पैमाने पर किया जाता है। पृथ्वी की सतह पर, भूकंप अपने आप को, भूमि को हिलाकर या विस्थापित कर के प्रकट करता है। भूकम्प के झटके कभी-कभी भूस्खलन और ज्वालामुखी गतिविधियों को भी पैदा कर सकते हैं।
अक्सर भूकंप भूगर्भीय दोषों के कारण आते हैं, भारी मात्रा में गैस प्रवास, पृथ्वी के भीतर मुख्यतः गहरी मीथेन, ज्वालामुखी, भूस्खलन और नाभिकीय परिक्षण ऐसे मुख्य दोष हैं।



[2]. बाढ़

बाढ़ प्राकृतिक प्रकोपों में सबसे अधिक विश्वव्यापी है। यदि जलप्लावन ऐसे क्षेत्रों में होता है जहां कम पानी रहता है तो उसे बाढ़ कहा जाता है।

   बाढ़ सामान्यतः एक प्राकृतिक घटना है। लेकिन जब यह दुर्घटना के रूप में प्रकट होती है तो इसके कारण और निवारण पर विचार करना आवश्यक हो जाता है। बाढ़ से भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व प्राभवित रहता है। इसके कारण भले ही अलग-अलग होते है। बाढ़ एक मानव संकट भी है।



[3]. तूफ़ान- 

तूफ़ान या आँधी पृथ्वी के वायुमंडल में उत्तेजना की स्थिति को कहते हैं जो अक्सर सख़्त मौसम के साथ आती है। इसमें तेज़ हवाएँ, ओले गिरना, भारी बारिश, भारी बर्फ़बारी, बादलों का चमकना और बिजली का चमकना जैसे मौसमी गतिविधियाँ दिखती हैं। आमतौर पर तूफ़ान आने से साधारण जीवन पर बुरा असर पड़ता है। यातायात और अन्य दैनिक क्रियाओं के अलावा, बाढ़ आने, बिजली गिरने और हिमपात से जान व माल की हानि भी हो सकती है। रेगिस्तान जैसे शुष्क क्षेत्रों में रेतीले तूफ़ान और समुद्रों में ऊँची लहरों जैसी ख़तरनाक स्थितियाँ भी पैदा हो सकती हैं। इसके विपरीत बारिश व हिमपात से कुछ इलाक़ों में सूखे की समस्या में मदद भी मिल सकती है।

             मौसम-वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि हर साल पृथ्वी पर लगभग 1.6 करोड़ गरज-चमक वाले तूफ़ान आते हैं।

[4]. भूस्खलन

ठोस चट्टान या शैल यदि अचानक ढलान पर फिसल जायें तो उसको भू-स्खलन कहते हैं । भू-स्खलन एक विश्वव्यापी प्रक्रिया है जो छोटे-बड़े पैमाने पर विश्व के सभी देशों में प्रायः होती रहती है, परंतु बड़े पैमाने पर भू-स्खलन की संख्या कम है जो विशेष परिस्थितियों में होते हैं । भू-स्खलन चंद सेकंडों में हो सकता है तथा इसमें कुछ दिन और महीने भी लग सकते हैं ।

 धरातली हलचलों जैसे पत्थर खिसकना या गिरना, पथरीली मिटटी का बहाव, इत्यादि इसके अंतर्गत आते है। भू-स्खलन कई प्रकार के हो सकते हैं और इसमें चट्टान के छोटे-छोटे पत्थरों के गिरने से लेकर बहुत अधिक मात्रा में चट्टान के टुकड़े और मिटटी का बहाव शामिल हो सकता है तथा इसका विस्तार कई किलोमीटर की दूरी तक हो सकता है। भारी वर्षा तथा बाढ़ या भूकम्प के आने से भू-स्खलन हो सकता है। मानव गतिवधियों, जैसे कि पेड़ों और वनस्पति के हटाने, सड़क किनारे खड़ी चट्टान के काटने या पानी के पाइपों में रिसाव से भी भू-स्खलन हो सकता है।

भू-स्खलन अन्य भौतिक आपदाओं जैसे भूकंप, ज्वालामुखी, सुनामी की भांति विनाशकारी नहीं होते, फिर भी यदि किसी बस्ती अथवा नगर या टाऊन के पास भू-श्चलन हो जाये तो भारी जान-माल का नुकसान हो सकता है । भू-स्खलन की तीव्रता चट्टानों की संरचना तथा सघनता पर निर्भर करता है । शैल-बहाव, कीचड-बहाव, चट्टानी टुकड़ों का गिरना, मलवा का खिसकना भू-स्खलन के कुछ उदाहरण हैं ।

जानते हैं  इन सभी का उपाय और निवारण क्या हैं।

 इन सभी भयानक परिस्थितियों  को हम सभी मानव समाज ने ही उत्पन्न किया है  हमने अपने प्राकृतिक वातावरण को इतना बिगाड़ दिया है कि अब आपदा कब और कैसे आए पता ही नहीं चल सकता ....
इनसे बचने का एक ही तरीका है सभी मानव सभ्य मानव की तरह जीवन जियो और बिना प्रकृति को नुकसान पहुंचाए ।
 हमें अपने पृथ्वी और पृथ्वी के वातावरण को सुरक्षित रखता होगा रखना होगा-



हमें फिर से सतयुग जैसा माहौल लाना होगा....
और मानव समाज को सभ्य समाज की राह दिखानी होगी


कलयुग में सतयुग कैसै आयेगा और कौन लायेगा

कबीर परमात्मा ने स्वसमवेद बोध पृष्ठ 171 (1515) पर एक दोहे में इसका वर्णन किया है,
जो इस प्रकार है:-

पाँच हजार अरू पाँच सौ पाँच जब कलयुग बीत जाय।
महापुरूष फरमान तब, जग तारन कूं आय।
हिन्दु तुर्क आदि सबै, जेते जीव जहान।
सत्य नाम की साख गही, पावैं पद निर्वान।

सबही नारी-नर शुद्ध तब, जब ठीक का दिन आवंत।
कपट चातुरी छोडी के, शरण कबीर गहंत।
एक अनेक ह्नै गए, पुनः अनेक हों एक।
हंस चलै सतलोक सब, सत्यनाम की टेक।

भावार्थ:- जिस समय कलयुग पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष बीत जाएगा, तब एक महापुरूष विश्व को पार करने के लिए आएगा। हिन्दु, मुसलमान आदि-आदि जितने भी पंथ तब तक बनेंगे और जितने जीव संसार में हैं, वे मानव शरीर प्राप्त करके उस महापुरूष से सत्यनाम लेकर मोक्ष प्राप्त करेंगे। जिस समय वह निर्धारित समय आएगा। उस समय स्त्री-पुरूष उच्च विचारों तथा शुद्ध आचरण के होकर कपट, व्यर्थ की चतुराई त्यागकर मेरी (कबीर जी की) शरण ग्रहण करेंगे। वर्तमान समय में जिस प्रकार से लाभ लेने के लिए एक ‘मानव‘ धर्म से अनेक पंथ (धार्मिक समुदाय) बन गए हैं, वे सब पुनः एक हो जाएंगे। सब हंस (निर्विकार भक्त) आत्माऐं सत्यनाम की शक्ति से सतलोक चले जाएंगे।

कैसा होगा स्वर्ण युग कलयुग में ?

वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज के साधक उनसे नाम दीक्षा लेकर सभी सामाजिक बुराइयों को छोड़ 16 गुण धारण कर रहे हैं।

 जो इस प्रकार हैं।

1.ज्ञान
2.विवेक
3.सत्य बोलना
4.संतोष रखना
5.प्रेम भाव से रहना
6.धीरज
7.किसी से धोखा ना करना
8.दया
9.क्षमा
10.शील
11.निष्कर्मा
12.त्याग
13.बैराग
14.शांति निज धर्मा
15.भक्ति करना
16.सबको मित्र समझना।



आप भी एक सभ्य मानव समाज से जुड़ियें 

 तथा सब भी सभ्य और सादा जीवन जीने के लिए अवश्य पढ़िए 

जीने की राह 

DOWNLOAD HERE

पुस्तक निशुल्क घर मंगवाने के लिए अपना पूरा नाम, पता, मोबाइल नंबर, कमेंट बॉक्स में कमेंट करें

अधिक जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर जाए
⬇️⬇️⬇️⬇️





SAVE EARTH 🌍 SAVE LIFE

Thursday, May 14, 2020

ENVIRONNENT


पृथ्वी सम्मेलन के 28 साल बाद भी हालात जस के तस ही थे, लेकिन कोरोना महामारी से भयाक्रांत समूचे विश्व में लॉक डाउन ने पर्यावरण को स्वस्थ होने का अवकाश दे दिया है। हवा का जहर क्षीण हो गया है और नदियों का जल निर्मल। भारत में जिस गंगा को साफ करने के अभियान 45 साल से चल रहे थे और बीते पांच साल में ही करीब 20 हजार करोड़ रूपए खर्च करने पर भी मामूली सफलता दिख रही थी, उस गंगा को तीन हफ्ते के लाक डाउन ने निर्मल बना दिया।
इतना ही नहीं चंडीगढ़ से हिमाचल की हिमालय की चोटिया देखने लगीं। औद्योगिक आय की दर जरूर साढ़े 7% से  2% पर जा गिरी है। अर्थव्यवस्था खतरे में है। लेकिन ठीक यही समय है जब पूरी दुनिया पर्यावरण और विकास के संतुलन पर उतनी ही गंभीरता से सोचे जितना कोरोना संकट से निपटने में सोच रही है |

छ: वर्ष पहले इसी दिन के आंकड़ों से तुलना करें तो वायु के अपेक्षाकृत बड़े प्रदूषणकारी धूल कणिकाओं PM10 की मात्रा में 44% की कमी पाई गई। अधिक खतरनाक माने जाने वाली सूक्ष्म वायु कणिकाएंं PM 2.5 की मात्रा में हालांंकि 8% की ही कमी अंकित की गई, पर इसका कारण इनके नीचे आकर किसी सतह पर स्थिर होने में लगने वाला समय माना जा सकता हैं।
 
1. वृक्षों की कटाई और वायु प्रदूषण : हमने अपने जीवन को आरामदायक बनाने के लिए वर्षा होने में सहायक, हवादार, छायादार और हरे-भरे वृक्षों की कटाई कर डाली। जंगल जला डाले। नतीजा है अनियमित वर्षा और तपती धरती के रूप में हमारे सामने।
         हरे-भरे जंगलों को इंडस्ट्री में तब्दील कर हम स्वच्छंद प्राणवायु लेने के भी हकदार नहीं रहे और सांस लेने के लिए भी प्रदूषित वायु और उससे होने वाली तमाम तरह की सांस संबंधी बीमारियां हमारी नियति हो गईं। यही नहीं, मृदा अपरदन भी प्रभावित हुआ और मिट्टी का कटान पर फिसलना, चट्टानों का फिसलना जैसी आपदाएं सामने आईं। 
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल 2-4 लाख लोगों की मौत का कारण सीधे सीधे वायु प्रदूषण है जबकि इनमे से 2-5 लाख लोग आतंरिक वायु प्रदूषण से मारे जाते हैं ।

2. जल प्रदूषण : बचपन से ही 'जल ही जीवन है' की शिक्षा पाकर भी हम जल का महत्व समझने में पिछड़ गए और प्रदूषण के मामले में इतने आगे निकल गए कि गंगा जैसी शुद्ध और पवित्र नदी को भी प्रदूषित करने से बाज नहीं आए जिसकी सफाई आज भारत सरकार के लिए भी बड़ा मुद्दा है।
         कभी स्वच्छता के नाम पर तो कभी धर्म और मान्यताओं के नाम पर हम जल को अतना प्रदूषित कर गए, कि उसे पुन: स्वच्छ करना ही हमारे बस की बात न रही। पृथ्वी का ¾ हिस्सा जलमग्न है, फिर भी करीब 0.3% जल ही पीने योग्य है। विभिन्न उद्योगों और मावन बस्तियों के कचरे ने जल को इतना प्रदूषित कर दिया है कि पीने के करीब 0.3% जल में से मात्र करीब 30% जल ही वास्तव में पीने के लायक रह गया है। निरंत बढ़ती जनसंख्या, पशु-संख्या, ओद्योगीकरण, जल-स्त्रोतों के दुरुपयोग, वर्षा में कमी आदि कारणों से जल प्रदूषण ने उग्र रूप धारण कर लिया और नदियों एवं अन्य जल-स्त्रोतों में कारखानों से निष्कासित रासायनिक पदार्थ व गंदा पानी मिल जाने से वह प्रदूषित हुआ।

3. ध्वनि प्रदूषण :  शहरों में वाहनों के बढ़ते ट्रैफिक और घरों में इले‍क्ट्रॉनिक सामान और समारोह में बजने वाले बाजे और लाउडस्पीकर्स की कृत्रिम ध्वनियों से हमने न केवल प्रकृति के मधुर कलरव को खो दिया है बल्कि अपनी कर्णशक्ति की अक्षमता और मानसिक विकारों के साथ ही नष्ट होती प्रकृति के शोर को भी अनदेखा कर दिया है 

आज ध्वनि प्रदूषण कई प्रकार की मानसिक और शारीरिक विकृतियों का कारण है जिसमें नींद न आना, चिड़चिड़ाहट, सिरदर्द एवं अन्य विकृतियां प्रमुख हैं। इस प्रदूषण से मनुष्य या प्रकृति ही नहीं, बल्कि धरती के अन्य जीव-जंतु भी प्रभावित हैं।

हम ही हमारी पृथ्वी और पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं। अपने आसपास छोटे पौधें हो या बड़े वृक्ष लगाएं। धरती की हरियाली बढ़ाने के लिए कृतसंकल्प हो तथा लगे हुए पेड़-पौधों का अस्तित्व बनाए रखने का प्रण ले सहयोग करें।
(1)  सड़कें या घर बनाते समय यथासंभव वृक्षों को बचाएं अत्यावश्यक हो तो पांच गुना पेड़ लगाकर प्रकृति को सहेजे।
(2)  अपने घर आंगन में थोड़ी सी जगह पेड़ पौधों के लिए रखें। ये हरियाली देंगे, तापमान कम करेंगे, पानी का प्रबंधन करेंगे व सुकून से जीवन में सुख व प्रसन्नता का एहसास कराएंगे।
(3) पानी का संरक्षण करें, हर बूंद को बचाएं -
     (a) ब्रश करते समय नल खुला न छोड़ें।
     (b) शॉवर की जगह बाल्टी में पानी लेकर नहाएं।
     (c) गाड़ियां धोने की बजाए बाल्टी में पानी लेकर कपड़े से साफ करें।
     (d) आंगन व फर्श धोने की बजाए झाडू व बाद में पोंछा लगाकर सफाई करें।
     (E) प्रतिदिन फर्श साफ करने के बाद पौंछे का पानी गमलों व पौधों में डालें। (फिनाइल रहित पानी लें)।
     (F) दाल, सब्जी, चावल धोने के बाद इकट्ठा कर पानी गमलों व क्यारियों में डालें।
     (g)  सार्वजनिक नलों को बहते देखें तो नल बंद करने की जहमियत उठाएं।
     (h) मेहमानों को पानी छोटे गिलास में दें व फिर भी पानी बचे तो गमलों में डालें।
     (I)  बर्तन धोते समय पानी का किफायत से उपयोग करें।
     (J)  कपड़ों में कम से कम साबुन डालें ताकि कम पानी में कपड़े धुल सकें।
    (k)  कूलर इत्यादि का उपयोग घर के सभी सदस्य साथ बैठकर करें।
    (L) नल को टपकने न दें, प्लम्बर बुलाकर तुरंत ठीक करवाएं 

(4) ऑफिस हो या घर बिजली का किफायती उपयोग करें।
     (a)  कमरे से बाहर निकलते लाईट, पंखें बंद करें।
     (b)  संभव हो तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करें।
     (c)  एक ही दिशा में रहने वाले कर्मचारी एक साथ दफ्तर आए-जाए।
     (d)  देर तक रूकना पड़े तो इंजन बंद करें।
     (e)  गाड़ी की सर्विसिंग यथासमय कर वातावरण को प्रदूषित होने से बचाएं।

(5) पशु पक्षियों को जीने दें। इस पृथ्वी पर मात्र आपका ही नहीं मूक पशु-पक्षियों का भी अधिकार है अतः
    (a) उनके आवास स्थलों पेड़-पौधों को नष्ट न करें।
    (b)  उनके दाना-पानी का इंतजाम कर थोड़ी सहृदयता दिखाएं।
    (c)  बाल्टी में गाय, बकरी, कुत्ते आदि के लिए व चकोरों में पक्षियों के लिए पानी का इंतजाम करें।
    (d)  गाय, कुत्ते को रोटी दें पर पॉलीथीन समेत खाना न फेंके, उनकी जान जा सकती है।
    (e) प्राणीमात्र पर दया का भाव दिखाएं।

(6) घर का कचरा सब्जी, फल, अनाज को पशुओं को खिलाएं।
(7) अन्न का दुरूपयोग न करें। बचा खाना खराब होने से पहले गरीबों में बांटे।
(8) पॉलीथीन का उपयोग ना करें। सब्जी व सामान के लिए कपड़े की थैलियां गाड़ी में, साथ में सदा रखें।
(9) यहां वहां थूककर, चाहे जहां मूत्र विसर्जन के लिए खड़े होकर अपनी (अ)सभ्यता व (अ)शिक्षित होने का प्रश्नचिन्ह न लगने दें।

सबसे महत्वपूर्ण स्वयं तथा नई पीढ़ी को प्रकृति, पर्यावरण, पानी व पेड़-पौधों का महत्व समझाएं व संवेदनशील हो उनसे सानिध्य स्थापित करने की सोच विकसित करें। पृथ्वी हरी भरी होगी तो पर्यावरण स्वस्थ होगा, पानी की प्रचुरता से जीवन सही अर्थों में समृद्ध व सुखद होगा।
      
                    GO GREEN EARTH      




आईये विचार करते हैं  👇👇

क्या हमें इतना आधुनिक  बनना जरूरी हैं  कि हम अपने ही  पर्यावरण  की देखभाल ना कर पायें   ?  



आप भी जुड़ियें एक सभ्य समाज से जो  पर्यावरण  के लिये और मानव समाज  के लिये अद्वितीय  कदम ऊठा रहे हैं ।
👇👇👇👇👇
  JOIN HERE

सही तरीके से जीवन जीने के  लिये अवश्य पढ़े.
पुस्तक  👇👇👇
जीने की राह


   👆👆👆👆👆👆




पुस्तक घर निःशुल्क मगवानें के लिए नीचे comment box में अपना नाम , पता, मोबाइल नम्बर  हमें भेजें।