पृथ्वी सम्मेलन के 28 साल बाद भी हालात जस के तस ही थे, लेकिन कोरोना महामारी से भयाक्रांत समूचे विश्व में लॉक डाउन ने पर्यावरण को स्वस्थ होने का अवकाश दे दिया है। हवा का जहर क्षीण हो गया है और नदियों का जल निर्मल। भारत में जिस गंगा को साफ करने के अभियान 45 साल से चल रहे थे और बीते पांच साल में ही करीब 20 हजार करोड़ रूपए खर्च करने पर भी मामूली सफलता दिख रही थी, उस गंगा को तीन हफ्ते के लाक डाउन ने निर्मल बना दिया।
इतना ही नहीं चंडीगढ़ से हिमाचल की हिमालय की चोटिया देखने लगीं। औद्योगिक आय की दर जरूर साढ़े 7% से 2% पर जा गिरी है। अर्थव्यवस्था खतरे में है। लेकिन ठीक यही समय है जब पूरी दुनिया पर्यावरण और विकास के संतुलन पर उतनी ही गंभीरता से सोचे जितना कोरोना संकट से निपटने में सोच रही है |
छ: वर्ष पहले इसी दिन के आंकड़ों से तुलना करें तो वायु के अपेक्षाकृत बड़े प्रदूषणकारी धूल कणिकाओं PM10 की मात्रा में 44% की कमी पाई गई। अधिक खतरनाक माने जाने वाली सूक्ष्म वायु कणिकाएंं PM 2.5 की मात्रा में हालांंकि 8% की ही कमी अंकित की गई, पर इसका कारण इनके नीचे आकर किसी सतह पर स्थिर होने में लगने वाला समय माना जा सकता हैं।
1. वृक्षों की कटाई और वायु प्रदूषण : हमने अपने जीवन को आरामदायक बनाने के लिए वर्षा होने में सहायक, हवादार, छायादार और हरे-भरे वृक्षों की कटाई कर डाली। जंगल जला डाले। नतीजा है अनियमित वर्षा और तपती धरती के रूप में हमारे सामने।
हरे-भरे जंगलों को इंडस्ट्री में तब्दील कर हम स्वच्छंद प्राणवायु लेने के भी हकदार नहीं रहे और सांस लेने के लिए भी प्रदूषित वायु और उससे होने वाली तमाम तरह की सांस संबंधी बीमारियां हमारी नियति हो गईं। यही नहीं, मृदा अपरदन भी प्रभावित हुआ और मिट्टी का कटान पर फिसलना, चट्टानों का फिसलना जैसी आपदाएं सामने आईं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल 2-4 लाख लोगों की मौत का कारण सीधे सीधे वायु प्रदूषण है जबकि इनमे से 2-5 लाख लोग आतंरिक वायु प्रदूषण से मारे जाते हैं ।
2. जल प्रदूषण : बचपन से ही 'जल ही जीवन है' की शिक्षा पाकर भी हम जल का महत्व समझने में पिछड़ गए और प्रदूषण के मामले में इतने आगे निकल गए कि गंगा जैसी शुद्ध और पवित्र नदी को भी प्रदूषित करने से बाज नहीं आए जिसकी सफाई आज भारत सरकार के लिए भी बड़ा मुद्दा है।
3. ध्वनि प्रदूषण : शहरों में वाहनों के बढ़ते ट्रैफिक और घरों में इलेक्ट्रॉनिक सामान और समारोह में बजने वाले बाजे और लाउडस्पीकर्स की कृत्रिम ध्वनियों से हमने न केवल प्रकृति के मधुर कलरव को खो दिया है बल्कि अपनी कर्णशक्ति की अक्षमता और मानसिक विकारों के साथ ही नष्ट होती प्रकृति के शोर को भी अनदेखा कर दिया है
हम ही हमारी पृथ्वी और पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं। अपने आसपास छोटे पौधें हो या बड़े वृक्ष लगाएं। धरती की हरियाली बढ़ाने के लिए कृतसंकल्प हो तथा लगे हुए पेड़-पौधों का अस्तित्व बनाए रखने का प्रण ले सहयोग करें।
(1) सड़कें या घर बनाते समय यथासंभव वृक्षों को बचाएं अत्यावश्यक हो तो पांच गुना पेड़ लगाकर प्रकृति को सहेजे।
(2) अपने घर आंगन में थोड़ी सी जगह पेड़ पौधों के लिए रखें। ये हरियाली देंगे, तापमान कम करेंगे, पानी का प्रबंधन करेंगे व सुकून से जीवन में सुख व प्रसन्नता का एहसास कराएंगे।
(3) पानी का संरक्षण करें, हर बूंद को बचाएं -
(a) ब्रश करते समय नल खुला न छोड़ें।
(b) शॉवर की जगह बाल्टी में पानी लेकर नहाएं।
(c) गाड़ियां धोने की बजाए बाल्टी में पानी लेकर कपड़े से साफ करें।(d) आंगन व फर्श धोने की बजाए झाडू व बाद में पोंछा लगाकर सफाई करें।
(E) प्रतिदिन फर्श साफ करने के बाद पौंछे का पानी गमलों व पौधों में डालें। (फिनाइल रहित पानी लें)।
(F) दाल, सब्जी, चावल धोने के बाद इकट्ठा कर पानी गमलों व क्यारियों में डालें।
(g) सार्वजनिक नलों को बहते देखें तो नल बंद करने की जहमियत उठाएं।
(h) मेहमानों को पानी छोटे गिलास में दें व फिर भी पानी बचे तो गमलों में डालें।
(I) बर्तन धोते समय पानी का किफायत से उपयोग करें।
(J) कपड़ों में कम से कम साबुन डालें ताकि कम पानी में कपड़े धुल सकें।
(k) कूलर इत्यादि का उपयोग घर के सभी सदस्य साथ बैठकर करें।
(L) नल को टपकने न दें, प्लम्बर बुलाकर तुरंत ठीक करवाएं
(4) ऑफिस हो या घर बिजली का किफायती उपयोग करें।
(a) कमरे से बाहर निकलते लाईट, पंखें बंद करें।
(b) संभव हो तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करें।
(c) एक ही दिशा में रहने वाले कर्मचारी एक साथ दफ्तर आए-जाए।
(d) देर तक रूकना पड़े तो इंजन बंद करें।
(e) गाड़ी की सर्विसिंग यथासमय कर वातावरण को प्रदूषित होने से बचाएं।
(5) पशु पक्षियों को जीने दें। इस पृथ्वी पर मात्र आपका ही नहीं मूक पशु-पक्षियों का भी अधिकार है अतः
(a) उनके आवास स्थलों पेड़-पौधों को नष्ट न करें।
(b) उनके दाना-पानी का इंतजाम कर थोड़ी सहृदयता दिखाएं।
(c) बाल्टी में गाय, बकरी, कुत्ते आदि के लिए व चकोरों में पक्षियों के लिए पानी का इंतजाम करें।
(d) गाय, कुत्ते को रोटी दें पर पॉलीथीन समेत खाना न फेंके, उनकी जान जा सकती है।
(e) प्राणीमात्र पर दया का भाव दिखाएं।
(6) घर का कचरा सब्जी, फल, अनाज को पशुओं को खिलाएं।
(7) अन्न का दुरूपयोग न करें। बचा खाना खराब होने से पहले गरीबों में बांटे।
(8) पॉलीथीन का उपयोग ना करें। सब्जी व सामान के लिए कपड़े की थैलियां गाड़ी में, साथ में सदा रखें।
(9) यहां वहां थूककर, चाहे जहां मूत्र विसर्जन के लिए खड़े होकर अपनी (अ)सभ्यता व (अ)शिक्षित होने का प्रश्नचिन्ह न लगने दें।
सबसे महत्वपूर्ण स्वयं तथा नई पीढ़ी को प्रकृति, पर्यावरण, पानी व पेड़-पौधों का महत्व समझाएं व संवेदनशील हो उनसे सानिध्य स्थापित करने की सोच विकसित करें। पृथ्वी हरी भरी होगी तो पर्यावरण स्वस्थ होगा, पानी की प्रचुरता से जीवन सही अर्थों में समृद्ध व सुखद होगा।
GO GREEN EARTH
आईये विचार करते हैं 👇👇
क्या हमें इतना आधुनिक बनना जरूरी हैं कि हम अपने ही पर्यावरण की देखभाल ना कर पायें ?
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